भजन-28
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने
में
देख लो मेरे मन के
नागिनें में
1. मुझ को कीर्ति न वैभव
न यश चाहिए
राम के नाम का मुझ को रस चाहिए
सुख मिले ऐसे अमृत को पीने में श्री
राम.................
2. राम रसिया हूँ मैं, राम सुमिरन करू,
सिया राम का सदा ही मै चिंतन करू ।
सच्चा आंनंद है ऐसे जीने में श्री राम..................
3. फाड़ सीना हैं सब को
यह दिखला दिया
भक्ति में हैं मस्ती बेधड़क दिखला दिया
कोई मस्ती ना सागर मीने में श्री
राम.................
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