भजन
-1
अमृत पिलो प्रेमी अमृत बरसे गुरु दरबार जी
मानुष जन्म अमोलक हीरा मिले न बारम्बार जी
1. पहला अमृत इस दुनियां में सत्पुरुषो का दर्शन
सत्पुरुषो के दर्शन से होता उज्ज्वल मन का दर्पण
कलिमल खुल जाता है जय हो, अनुभव खुल जाता है जय हो,
सत्पुरुषो के दर्शन -2, से होता प्रभु का दीदार जी अमृत......
2. दूसरा अमृत इस दुनियां में साधु संत समागम
संत समागम वहां जहां की नाम की महिमा पावन
नाम सुख की फुलवाड़ी जय हो, नाम सच खंड की गाड़ी जय हो,
देते संत दुहाई -2 प्रेमी हो जाये भव पार जी अमृत......
3. तीसरा अमृत इस दुनियां में परमार्थ और सेवा
सेवा से ही मिलता प्रेमी चार पदारथ मेवा
होमैं कट जाती है जय हो, माया हट जाती है जय हो
सेवा की महिमा का प्रेमी अंत ना पारावार जी अमृत......
4. चौथा अमृत इस दुनियां में सत्पुरुषो की वाणी
सत्पुरुषो की वाणी सुन कर तर गए लाखों प्राणी
अन्तर पट खुल जाते है जय हो, सुरती गगन समावे जय हो
सत्पुरुषो की वाणी -2, खोले भक्ति भरे भण्डार जी अमृत.....
5. पांचवा अमृत इस दुनियां में नित्य आरती पूजा
नित्य आरती पूजा के कोई सूझे काम न दूजा
प्रेम से आरती गायें जय हो, तो मन आनंद समावे जय हो
आरती पूजा खोले -2 बंद ह्रदय के द्वार जी
6. एक वो अमृत सागर मंथन से जो बाहर आए
एक वो अमृत जिसे चंद्रमा धरती पर बरसाए
मगर अमृत ये न्यारा जय हो, मिलाये राम प्यारा जय हो
भर –भर जाम पिलाए -2 दाता आनंदपुर दरबार के अमृत ............
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