भजन -63
ये दरबार हमारा त्रिभुवन से है न्यारा
त्रिभुवन से है न्यारा प्यारे त्रिभुवन से
है न्यारा ये दरबार हमारा..............
1. सच्ची खुशियाँ इस दरबार के चारों तरफ लहराती हैं -2
ऋधियाँ सिद्धियाँ
देवियाँ शक्तियाँ सेवा को ललचाती हैं -2
शान अनोखी
इसकी प्यारे सबका मन हर्षातीं है ये दरबार ...............
2. इस सच्चे दरबार की जो भी चरण शरण में आ जाए -2
चार पदारथ
सहजे मिल गए धन-धन भाग मना जाए -2
है ये बात
हकीकत सज्जनों संतो ने फरमाया है ये दरबार ...............
3. सेवा भक्ति और नाम का यहाँ सच्चा दरबार है -2
इस दरबार के
मालिक मेरे परमहंस अवतार है -2
सदा ही कायम
रहने वाला अनुपम इनका प्यार है ये
दरबार.............
4. दासन दास पे श्री सतगुरु का कितना बड़ा ऐहसान है -2
नाम जहाज
बनाया जो ले जाता भव से पार है -2
सारे प्रेमी
मिलकर बोलो सतगुरु की जयकार है ये दरबार.............
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