भजन
-54
सतगुरु दी नगरी अर्शां तो उतरी नक्शा क्या
खूब बनाया है
नगरी दा राजा मेरा हारां वाला जिसने दरबार
बनाया है
1.
आनन्दपुर
दियां सोनियां गलियां आसे-पासे हरियाली -2
सोने-सोने मंदिरा दी कैसी शान निराली -2
कार ते बैठ के सतगुरु आंदे सबका ही मन हर्षाया है
सतगुरु दी..........
2. मोती बाग़ विच सतगुरु मेरे सैर करन नूँ आंदे -2
संगता दे नाल लीला करदे खूब परशाद लुटांदे -2
भक्ति दी दात प्रभु खूब लुटांदे सब नूँ ही शरणी
लाया है सतगुरु दी.....
3. ऊँचे सिंहासन सतगुरु मेरे बड़े प्यारे लगदे -2
सोने -2 दर्शन करके जय-जय कारें लगदे -2
दर्शन नूरानी पाकर प्रभु का आनन्द ही आनन्द छाया है
सतगुरु दी......
4. आनंदसर की शोभा न्यारी वैकुण्ठों का नज़ारा -2
संत रूप में मेरे प्रभु ने है अवतार धारा -2
राम
बने कभी श्याम बने अब सतगुरु बन के आये है सतगुरु दी..........
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