भजन
-1
सोवत जागत उठत बैठत दिल में बसता गुरु
प्यारा
सब जग का तारण हारां सोवत जगत..........
1. सतगुरु साँचा मीत हमारा, बिन सतगुरु नहीं कोई
गुरु बिन और जो मन में धारे, ऐसा और न कोई
आत्म हम परमात्म सतगुरु, यह सिद्धांत विचारा है
गुरु बिन और ना आधारां सोवत जागत...............
2. जिस साहिब को सब जग ढूंढे, सो साहिब नहीं दूरी
सो घट भीतर सदा हमारे, हम साहिब के हुजूरी
कोई जाने न जाने साहिब, सतगुरु देव हमारा है
जो है प्राणों से प्यारा सोवत जागत...............
3. सुमिरन ध्यान और पूजन सेवन, एक सतगुरु का करना
बिन सतगुरु के गुरुमुख को कुछ, और न मन में धरना
यही योग है यही ज्ञान है, यही सार का सारा है
विद्या और पसारा है सोवत जागत..............
4. सतगुरु से जब नेह लगाया, और आस न कीजे
तन, मन धन सतगुरु चरणों में, सदके दासां कीजे
सतगुरु रीझे सेवक भीजे, प्रेम के रंग अपारा है
पंथ ये जग से न्यारा है सोवत जागत...............
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