Wednesday, December 23, 2020

17. हैं संत प्यार के मीत

 

भजन -17

हैं संत प्यार के मीत, जगत में नूर फैलाते हैं

यही चली आई सदा रीत, के सबको गले लगाते है

 

1. उपकार करना, दुख दर्द हरना

   यही है इन्हीं का करना

   रखवाले बनकर, उंगली पकड़कर, पहुँचाते है निजधाम

   बने जीव के सच्चे मीत -2 के भव से पार लगते है..............

 

2. दुनियां साथ कोई आए न जाये संतो का है कहना

   संतो की वाणी, सुन ले ओ प्राणी, कैसे जगत में रहना

   जैसे जल कमल के बीच जगत मे नूर फैलाते हैं..............

 

3. मीरा से सीखो, सहजों से सीखो, संतो से प्यार निभाना

   मर- मर के जीना, जी जी के मरना, ये है इन्ही का तराना

   अगर पाना है सच्चा मीत, प्रभु संग प्रीत बढ़ाते है...............

 

4. दासन दासां ऐनां तू प्यासा, संतो से नेह लगाले

   यही है वेला अनमोल तेरा, जीवन तू सफल बना ले

   यूँ घड़ी न जाये बीत, संत सतगुरु फरमाते हैं..................

 

 

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