भजन
-28
महिमा पाँच रत्न की प्यारे संतों ने बखानी
है
समझे गुरुमुख ज्ञानी है
1. आरती पूजा नित ही करना पहला रत्न बताया
है
इस पर हमकों अमल है करना, सेवक धर्म बताया है
आज्ञा में जो जीव है रहते जग में उत्तम ज्ञानी है समझे..........
2. रत्न दूसरा भजन है प्यारे जो इसको कर
पाएगा
जीते जी वो आनंद मिलेगा, और मुक्त हो जाएगा
गुरुमुख होके भजन करे ना, सुरति फिर भटकानी है समझे..........
3. रत्न तीसरा सेवा है, भण्डार सेवा का खोल
दिया
हुनमान जी ने सेवा करके राह भक्ति का खोल दिया
आज भी दुनिया याद है करती, की जो जो क़ुरबानी है समझे...........
4. चौथा रत्न भी बतलाऊं, हीरा ये प्रदान
किया
सत्संग बिन जिंदगी है क्या, ये राज रूहानी आन दिया
ये ही रत्न अमोलक दीप सच्ची राह दिखानी है समझे........
5. रत्न पाँचवा सुन लो, प्यारे दर्शन का
नजारा है
खुद
ही खुदा पहचान करों ये असली भेद बताता है
सतगुरु का ध्यान ही प्रेमी, श्री दर्शन की निशानी है समझे..........
6. इन रत्नों से प्रेम करके खुद को रत्न
बनाए हम
प्रसन्नता है प्रभु की इसमें, इसको अमल में लाए हम
जिंदगी अपनी दासनदासा इनसे ही बनानी है समझे.............
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