भजन-35
ओ सतगुरु प्यारे जबसे पाई है तेरी शरण
तेरे चरणों में लागी लगन मेरा झूम उठा है मन
1. तेरे ही चरणों से निभ जाए मेरी, दिल की है ये
तमन्ना
प्रेम की डोरी टूटे ना, कभी तू मुझसे रूठे ना
मुझपे कर देना इतना कर्म हो.......
ओ सतगुरु........
2. तेरे ही भक्ति का इच्छुक हूँ मैं, और कोई इच्छा ना
सेवा तुम मुझसे करवाना, नाम का सुमिरन करवाना
रहूँ ध्यान में तेरे मगन हो.........
ओ सतगुरु........
3. हर मौज में तेरी सतगुरु जी, मेरी भलाई छीपी है
और नहीं कुछ मैं तो जानू, इक बस तुमको ही मानू
कर लू अपना ये जीवन सफल हो........
ओ सतगुरु........
*****