भजन-37
मन लागा गुरु चरनन में भ्रम अंदेशे दूर हुए
1. गुरु
कृपा ते मन जागा
सहज
-2 चरनन लागा
छोड़
के सब झंझट झगड़े भ्रम अंदेशे.......
2. शरण
गहे तो सूझ पड़ी
जन्म
की साधना पूरी हुई
भक्ति
बिना ना जीव तरे भ्रम अंदेशे.......
3. चरन
कमल अब मन धारु
तन
मन धन गुरु पर वारु
सतगुरु
में मेरे प्राण बसे भ्रम अंदेशे.......
4. जीव
पे दया सतगुरु किनी
चरणों
की भक्ति दीनी
दासन
दास सदा सिमरे भ्रम अंदेशे.......
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