Thursday, December 24, 2020

44. आ गए तुम जो मन के मंदिर

 

भजन -44

आ गए तुम जो मन के मंदिर में अब किसी का भी इन्तजार नहीं

सन सतगुरु की दात बक्शे बिना होती नईयां भाव के पार नहीं

 

1. तू तो अम्बर का ध्रुव सितारा है, प्रेमी भक्तों का तू सहारा है

भक्ति मार्ग के इस बगीचे को तूने हर ढंग से सवारा है

बादशाह परमहंस पीर मेरे, तेरे बिन कोई गमख्वार नहीं

आ गए.........

 

2. प्रेमा भक्ति की जूस्त-जू वाले, तेरे दर पर सदाए देते है

चलते जाते है अपनी मंजिल पर, तुझको दिल से दुआएँ देते है

जिन पर उतरी है रहमते तेरी, उनकी खुशियों का पारावार नहीं

आ गए............

 

3. तुम हो दाता दयाल संत प्रभु, बात सबके भले की कहते हो

सोई रूहे जगाए जाते हो, फिर भी निर्लेप होके बैठे हो

महिमा वर्णन करूँ मैं क्या सतगुरु, तेरी सिफतों का कुछ खुमार नहीं

आ गए.........

 

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