भजन
-32
मेरे साहिबा मैं तेरी हो
मुक्की हाँ,
मैनु मेरे साहिबा, मनो ना वसारी,
हर गल्लों मैं टुकिया,
मेरे साहिबा मैं तेरी हो मुक्की हाँ ।
1. अवगुन हारी को गुण नाही,
वक्ष करे ता मैं छुटियाँ ,
मेरे साहिबा मैं तेरी हो मुक्की हाँ ।
2. ज्यों पावे त्यों राख पियारिया,
दामन तेरे वे मैं लुक्कियां,
मेरे साहिबा मैं तेरी हो मुक्की हाँ ।
3. जे तू नजर मेहर दी भाले,
चढ़ चौबारे मैं सुत्ती हां,
मेरे साहिबा मैं तेरी हो मुक्की हाँ ।
4. कहे हुसैन फ़कीर साईं दा,
दर तेरे दी मैं कुत्ती हां,
मेरे साहिबा मैं तेरी हो मुक्की हाँ ।
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