भजन -54
तेरी मेहरबानी का है बोझ इतना
जिसे मैं उठाने के काबिल नहीं हूँ
मैं आ तो गया हूँ मगर जानता हूँ तेरे दर पे आने के काबिल नहीं
हूँ
- तुमने अदा की
मुझे जिंदगानी
महिमा
ये तेरी मैंने ना जानी
कर्ज
दार हूँ मैं गुनहागार हूँ मैं
नजरे
मिलाने के काबिल नहीं हूँ.........
- ये माना के
मालिक, हो तुम दो जहां के
कैसे
मैं झोली फैलाऊँ आगे
जो
पहले दिया है वोही कम नहीं है
उसी
को चुकाने के काबिल नहीं हूँ...........
- तमन्ना यहीं
है के सिर को झुका लूं
दीदार
तेरा जी भर के पा लूँ
सिवा
दिल के टुकड़ों के ना कुछ पास मेरे
मैं
कुछ भी चढ़ाने के काबिल नहीं हूँ..........
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