भजन -24
मुझको तो श्री आन्दपुर का दरबार सुहाना लगता
है
कुरबान गुरु की रहमत पे सारा ही ज़माना लगता
है
1.
आती
है याद जब सतगुरु की, पलकों से जाम झलकते है -2
दरबार रूहानी जन्मों से जाना पहचाना लगता है -2
मुझको तो..........
2. सतगुरु की पावन चरण धूलि मस्तक पे जब से लगाई है -2
सतगुरु के सिवा इस दुनियां में सब कुछ ही बेगाना
लगता -2
मुझको तो..........
3. दुर्गम घाटी पर चलने की, युक्ति जबसे बतलाई है -2
आसान मुझे तबसे अपनी मंजिल का पाना लगता है -2
मुझको तो..........
4. पाया है जब से सतगुरु को, मेरा भाग्य सितारा चमका
है -2
उनका हर वचन मुझे दाता, जन्नत का खजाना लगता है -2
मुझको तो..........
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