भजन-44
सतगुरु जी मेरे हैं शाहों के शाह, कुरबान इनपर दो जहाँ-२,
1.
कलयुग में आयें हैं जग को तराने-२,
हम भटकें जीवों को,राह दिखाने-२,
उपकार हैं किये जीवों पे महान जी-२,
ना भुलायें
जायेंगे आपके एहसान जी-२,
गुणगान इनके कया गायें जुबां,कुरबान इनपर दो जहाँ-२,
2.
भक्ति मुक्ति के हैं ये भण्डारी-२,
फैली त्रिलोकी में महिमा हैं
न्यारीं-२,
बकशतें हैं रात दिन दात
सच्चे नाम की-२,
ना फिक्र हैं कुछ अपने आराम
की-२,
सुखों का खज़ाना रहे हैं लुटा,कुरबान इनपर दो जहाँ-२,
3.
रहमतों के ये सागर ये दाता दयाल जी-२
एक झलक में करतें सबकों निहाल
जी-२,
जिसनें भी हैं लिया आपका
आधार जी-२,
वो सहज मे हो जाये भवसागर से
पार जी-२,
चुमें कदम उनके मन्जिल सदा,कुरबान इनपर दो जहाँ-२,
4.
दास की बिन्ती हैं आपसे स्वामी-२,
चरणों में तेरे बीतें,मेरी जिन्दगानीं-२,
यूहीं निहारता रहूँ मैं सदा
छवि तेरी-२,
आपके दीदार बिन गुजरें ना इक
घड़ी-२,
चाहूँ सदा तुझसे तेरी दया, कुरबान इनपर दो जहाँ-२,
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