Monday, December 28, 2020

44. सतगुरु जी मेरे हैं शाहों के शाह

 

भजन-44

सतगुरु जी मेरे हैं शाहों के शाह, कुरबान इनपर दो जहाँ-२,

 

1.    कलयुग में आयें हैं जग को तराने-२,

हम भटकें जीवों को,राह दिखाने-२,

उपकार हैं किये जीवों पे महान जी-२,

ना भुलायें जायेंगे आपके एहसान जी-२,

गुणगान इनके कया गायें जुबां,कुरबान इनपर दो जहाँ-२,

 

2.    भक्ति मुक्ति के हैं ये भण्डारी-२,

फैली त्रिलोकी में महिमा हैं न्यारीं-२,

बकशतें हैं रात दिन दात सच्चे नाम की-२,

ना फिक्र हैं कुछ अपने आराम की-२,

सुखों का खज़ाना रहे हैं लुटा,कुरबान इनपर दो जहाँ-२,

 

3.    रहमतों के ये सागर ये दाता दयाल जी-२

एक झलक में करतें सबकों निहाल जी-२,

जिसनें भी हैं लिया आपका आधार जी-२,

वो सहज मे हो जाये भवसागर से पार जी-२,

 चुमें कदम उनके मन्जिल सदा,कुरबान इनपर दो जहाँ-२,

 

4.    दास की बिन्ती हैं आपसे स्वामी-२,

चरणों में तेरे बीतें,मेरी जिन्दगानीं-२,

यूहीं निहारता रहूँ मैं सदा छवि तेरी-२,

आपके दीदार बिन गुजरें ना इक घड़ी-२,

चाहूँ सदा तुझसे तेरी दया, कुरबान इनपर दो जहाँ-२,

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