भजन
-2
भक्ति और मुक्ति का सतगुरु जी तेरा दर
है
जहाँ काल और माया का रहता न कोई ड़र है
1.
पग
-2 पे माया ने यहाँ जाल बिछाया है -2
जीवों को चौरासी में इसने भरमाया है -2
तेरी किरपा बिन न तरे यह ऐसा चाकर है
भक्ति...........
2. भक्ति रस के प्यासे जो दर पे आते है -2
गुरु नाम का अमृत पी वे भाग मनाते है -2
मिला संचित कर्मों से प्रभु तुझसा रहबर है
भक्ति..............
3. अति पावन तीर्थ है सतगुरु जी तुम्हारी शरण -2
सब दुःख संताप मिटे जो आवे तेरी शरण -2
मिली चरण शरण दाता तो ये रहमत की नजर है
भक्ति............
4. पूरी हो मुरादें सभी एक तेरे द्वारे पे -2
बन जाती है तकदीरें एक तेरे ईशारे से -2
तेरी
किरपा से जगता सबका ही मुकद्दर है भक्ति.............
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