Tuesday, December 15, 2020

18. मानव तू है मुसाफिर, दुनियाँ है

                                                                        भजन-18

 

मानव तू है मुसाफिर, दुनियाँ है धर्मशाला,
संसार क्या है सपना, वो भी अजब निराला,

1. ये रैन है बसेरा, है किराए का ये डेरा,
  उसमे फँसा है ये फेरा, ये तेरा है ये मेरा,
  शीशे को मान बैठा, तू मोतियों की माला, संसार क्या है......

2. जनमों का पुण्य संचित, नर देह तूने पाया,
   कंचन और कामिनी ने, इसे व्यर्थ ही गँवाया,
   कौड़ी के मौल तूने, हीरे को बेच डाला संसार क्या है......

3. नश्वर है तन का ढाँचा, बालू की भीत काँचा,
   ऋषियों ने परखा जाँचा, बस राम नाम साँचा,
   झटके  तू पी शिकारी, सिया राम नाम प्याला संसार क्या है......

 

*****