भजन-47
अमृत है हरी नाम जगत में,
इसे छोड़ विषय रस पीना क्या
हरि नाम नहीं तो जीना क्या
1. काल सदा अपने रस डोले,
ना जाने कब सर चढ़ बोले
हरि का नाम जपो
निसवासर, इसमें अब बरस महीना
क्या हरि नाम.....
2. तीरथ है हरी नाम तुम्हारा, फिर क्यूँ फिरता
मारा मारा
अंत समय हरि नाम ना
आवे, फिर काशी और मदीना
क्या हरि नाम.....
3. भूषन से सब अंग सजावे,
रसना पर हरी नाम ना लावे
देह पड़ी रह जावे यही
पर, फिर कुंडल और नगीना
क्या हरि नाम.....
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