Tuesday, December 15, 2020

43. दास रघुनाथ का नंदसुत का सखा

 

भजन-43

 

दास रघुनाथ का नंदसुत का सखा,
कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा।
सुख मिला श्री अवध और ब्रजवास का,
कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा।

1.  मैथिली ने कभी मोद मदक दिया,
राधिका ने कभी गोद में ले लिया।
मातृ सत्कार में मग्न होकर सदा, कुछ इधर भी रहा............

 

2.  खूब ली है प्रसादी अवध राज की,
खूब जूठन मिली यार ब्रजराज की।
भोग मोहन छका, दूध माखन चखा कुछ इधर भी रहा............

 

3.  उस तरफ द्वार दरबान हूँ राज का,
इस तरफ दोस्त हूँ दानी शिरताज का।
घर रखता हुआ जर लुटता हुआ कुछ इधर भी रहा............

 

4.  कोई नर या इधर या उधर ही रहा,
कोई नर ना इधर ना उधर ही रहा।
बिन्दुदोनों तरफ ले रहा है मज़ा कुछ इधर भी रहा............

 

 

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