भजन-69
बहे सत्संग का दरिया, नहा लो जिस का जी चाहे,
करो हिम्मत जरा डुबकी, लगा लो जितना जी चाहे, बहे सत्संग..........
1. हज़ारो रतन है इसमें
इक से इक बड़याला,
किसी का डर नहीं कुछ भी उठा लो जितना जी चाहे,
बहे सत्संग का दरिया.........
2. मिटे संसार का चक्कर
लगे नहीं मौत की टकर,
करे है पार भव सागर, करा लो जिसका जी चाहे,
बहे सत्संग का दरिया......
3. बनावे चोर से साधु, मिटावे दुष्टता
मन की,
कटे जड़ मूल पापो का, कटा लो जिसका जी चाहे,
बहे सत्संग का दरिया..........
4. बनावे रंक से राजा, बड़े राजो के महाराजा
श्रेष्ठ से श्रेष्ठ अपने को, बना लो
जिसका जी चाहे
बहे सत्संग का दरिया..........
5. करत यह मुक्त जीवन ही, मिटे संताप
दुःख सारे
रंगे हरि प्रेम के रंग में, रमा लो जिसका जी चाहे
बहे सत्संग का दरिया..........
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